पितृ पक्ष 2024 # श्राद्ध का विशेष क्या महत्व हैं#
पितृ पक्ष 2024 # श्राद्ध का विशेष क्या महत्व हैं# भाद्र के पूर्णिमा से अश्विन माह के अमावस्या तक
इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत मंगलवार, 17 सितंबर 2024 से हुई थी, जिसका समापन बुधवार, 02 अक्टूबर को होगा।
https://youtu.be/rWCn6TJ8SLcपितृ पक्ष 2024
पितृ पक्ष आज से शुरू, जानें श्राद्ध करने की तिथियां, नियम और विधि
Pitru Paksha 2024: भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहते हैं, जिसमें हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं. इस बार पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक समाप्त होंगे. पितृ पक्ष में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, ब्राह्मण भोज आदि किया जाता है. साथ ही, पितृ पक्ष की तिथियों पर पितरों की पूजा करके उनको तृप्त किया जाता है.
हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दिनों का बहुत ही खास महत्व है. हमारे परिवार के जिन पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें हम पितृ मानते हैं. मृत्यु के बाद जब व्यक्ति का जन्म नहीं होता है तो वो सूक्ष्म लोक में रहता है. फिर, पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवारवालों को मिलता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने लोगों पर ध्यान देते हैं और उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी समस्याएं दूर करते हैं.
पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त तिथियों का ध्यान रखना भी जरूरी है। शास्त्रों के अनुसार, तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है। विभिन्न तिथियों में श्राद्ध-कर्म आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से पितृ पक्ष प्रारंभ होकर आश्विन अमावस्या को समाप्त होता है। इस अवधि में मनुष्य पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अपने-अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनके श्राद्ध करने चाहिए। जो मनुष्य तिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। शास्त्रानुसार तिथि अनुसार किए गए श्राद्ध का फल भी अलग-अलग होता है, जो इस प्रकार है-
पूर्णिमा : जो व्यक्ति पूर्णिमा को श्राद्ध करते हैं, उनकी बुद्धि, बल, पौरुष, पुत्र-पौत्रादि धन ऐश्वर्य में वृद्धि होती है और वह चिरकाल तक सुखों का उपभोग करता है।
प्रतिपदा : इस तिथि को अपने पितरों का श्राद्ध करने वाले की धन-संपत्ति अक्षुण्ण रहती है।
द्वितीया : जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध द्वितीया को करते हैं, उन्हें राजा के तुल्य ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
तृतीया : इस दिन श्राद्ध किया जाता है, तो श्राद्धकर्ता के समस्त कष्टों, दुखों और शत्रुओं का शमन होता है और वह अक्षय धन को प्राप्त करता है।
चतुर्थी : जो लोग चतुर्थी को श्राद्ध करते हैं, उनका चतुर्मुखी विकास होता है। पितर उनसे प्रसन्न होकर उनके अभीष्ट की सिद्धि करते हैं।
पंचमी : पंचमी को किया गया श्राद्ध अकूत धन संपत्ति और स्वर्ग की प्राप्ति कराता है।
षष्ठी : इस दिन श्राद्ध से देवगण की गई पूजा सहर्ष स्वीकार करते हैं।
सप्तमी : जो सप्तमी तिथि को श्राद्ध-कर्म करते हैं, उन्हें अनेक महान यज्ञों के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
अष्टमी : इस दिन श्राद्ध करने से समस्त सिद्धियों और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
नवमी : जो व्यक्ति नवमी को श्राद्ध-कर्म करते हैं, वह मनोनुकूल आचरण करने वाली पत्नी प्राप्त करते हैं। समस्त स्त्रियों का श्राद्ध इसी दिन किए जाने का विधान है।
दशमी : इस दिन श्राद्ध करने वाला व्यक्ति ब्रह्मत्व तथा स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करता है।
एकादशी : एकादशी को श्राद्ध करने वाले मनुष्य के समस्त पाप कर्मों का शमन हो जाता है। उसे वेद उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त होता है और भगवान विष्णु का सानिध्य प्राप्त होता है।
द्वादशी : द्वादशी के दिन श्राद्ध करने वाला प्रचुर अन्न धन को प्राप्त करता है। दान आदि श्रेष्ठ कर्म उसके द्वारा संपन्न किए जाते हैं।
त्रयोदशी : जो त्रयोदशी को श्राद्ध-कर्म करते हैं, उन्हें विलक्षण बुद्धि, अच्छी संतति, दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
चतुर्दशी : चतुर्दशी के दिन श्राद्ध-कर्म करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों को शांति मिलती है।
अमावस्या : इस दिन भूली बिसरी तिथि वालों का तथा जुड़वां लोगों का श्राद्ध किया जाता है। इससे पितरों असीम आशीर्वाद मिलता है।
विशेष : श्राद्ध-कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है-
देवताभ्य : पितृभ्यश्च महायोगिश्य एव च। नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्युत।।
श्राद्ध का अन्न
यदन्नं पुरुषोऽश्नाति तदन्नं पितृदेवताः। अपकेनाथ पकेन तृप्तिं कुर्यात्सुतः पितुः।।
अर्थात मनुष्य जिस अन्न को स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितृ और देवता भी तृप्त होते हैं। पकाया हुआ अथवा बिना पकाया हुआ अन्न प्रदान करके पुत्र अपने पितृ को तृप्त करें।
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