कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥

ऋषि पंचमी

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
सनातन धर्म के अनुसार भादों मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी (भाद्र शुक्ल पंचमी) को ऋषी पंचमी का त्यौहार मनाया जाता हैं । पूर्वकाल में यह व्रत समस्त वर्णों के पुरुषों के लिए बताया गया था, किन्तु समय के साथ साथ अब यह अधिकांशत: स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इस दिन चारों वर्ण की स्त्रियों को चाहिए कि वे यह व्रत करें। यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के प्रक्षालन के लिए स्त्री तथा पुरुषों को अवश्य करना चाहिए। इस दिन पवित्र नदीयों में स्नान का भी विशेष माहात्म्य है।इस दिन महिलाएं व्रत रख कर सप्त ऋषियों की पूजा करती हैं। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार इस अवसर पर स्नान-शौच करके वेदी बनाकर उस पर विविध रंगों से अष्टदल कमल का चित्रण किया जाता, फिर उस पर ऋषियों की मूर्ति बनाकर विधान के साथ पूजन किया जाता है। इस दिन ऋषियों का पूजन बहुत अर्थपूर्ण है। ऋषि मन्त्रद्रष्टा, मन्त्रस्रष्टा और युगसृजेता होते हैं।

ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार ऋषि पंचमी के दिन महिलाएं घर में साफ-सफाई करके पूरे विधि विधान से सात ऋषियों के साथ देवी अरुंधती की स्थापना करती हैं। सप्त ऋषियों की हल्दी, चंदन, पुष्प अक्षत आदि से पूजा करके उनसे क्षमा याचना कर सप्तऋषियों की पूजा की जाती है। पूरे विधि- विधान से पूजा करने के बाद ऋषि पंचमी व्रत कथा सुना जाता है तथा पंडितों को भोजन करवाकर कर व्रत का उद्यापन किया जाता है। ऋषि पंचमी के दिन इस विधान से महिलाएं ऋषियों की पूजा कर उनसे धन-धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति तथा सुख-शांति की कामना करती हैं।
इस दिन व्रत रखकर ऋषियों का पूर्ण विधि-विधान से पूजन कर कथा श्रवण करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। अविवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत बेहद महत्त्वपूर्ण और फलकारी माना जाता है। इस दिन हल से जोते हुए अनाज को नहीं खाया जाता अर्थात जमीन से उगने वाले अन्न ग्रहण नहीं किए जाते हैं।यह व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी है. यह व्रत और ऋषियों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता, समर्पण एवं सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है.

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥


इस व्रत का एक महत्वपूर्ण भाग स्त्रियों के मासिक धर्म से भी जुडा है शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री का कार्य करना निषेध है परंतु यदि इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाये तो स्त्री को इसका पाप लगता है अत: मासिक धर्म के समय लगे पाप से छुटकारा पाने के लिए यह एक मात्र व्रत स्त्रियों द्वारा किया ही जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठर को एक कथा सुनाई थी जिसके अनुसार जब इन्द्र ने त्वष्टा के पुत्र वृत्र का हनन किया तो उन्हें ब्रह्महत्या का अपराध लगा। जब इन्द्र को ब्रह्म हत्या का महान पाप लगा तो उसने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ब्रह्मा जी से प्रार्थना की. ब्रह्मा जी ने उस पर कृपा करके उस पाप को चार भागों में बांट दिया था जिसमें प्रथम भाग अग्नि (धूम से मिश्रित प्रथम ज्वाला) में, नदियों (वर्षाकाल के पंकिल जल) में, पर्वतों (जहाँ गोंद वाले वृक्ष उगते हैं) में और चौथे भाग को स्त्री के रज में विभाजित करके इंद्र को शाप से मुक्ति प्रदान करवाई थी. इसलिए उस पाप को शुद्धि के लिए ही हर स्त्री को ॠषि पंचमी का व्रत करना चाहिए. शास्त्र  कहते हैं कि यदि कोई स्त्री या कन्या ऋषि पंचमी का व्रत करे और श्रद्धा भाव के साथ पूजा तथा क्षमा प्रार्थना करे तो उसे इस पाप से मुक्ति प्राप्त होती है. 

सप्त ऋषियों के लिए मन्त्र —
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥

अरून्धती के लिए मन्त्र —
अत्रेर्यथानसूया स्याद् वसिष्ठस्याप्यरून्धती। कौशिकस्य यथा सती तथा त्वमपि भर्तरि॥

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