हिंदी पत्रकारिता दिवस 2022 विशेष: राष्ट्र निर्माण में पत्रकारिता की भूमिका एवं चुनौतियां

पत्रकारिता राष्ट्र निर्माण का “चौथा स्तंभ” है। 
आज टीवी समाचार चैनलों के 24 घंटों के प्रसारण, सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर)के होते हुए भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बेशक आज पत्रकारिता के कई रूप हैं, हर भाषा में हैं। किंतु हिंदी पत्रकारिता अपनी व्यापकता, पहुंच में बहुत आगे है।
पत्रकारिता राष्ट्र निर्माण का “चौथा स्तंभ” है। आज टीवी समाचार चैनलों के 24 घंटों के प्रसारण, सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर)के होते हुए भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बेशक आज पत्रकारिता के कई रूप हैं, हर भाषा में हैं। किंतु हिंदी पत्रकारिता अपनी व्यापकता, पहुंच में बहुत आगे है।

हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई 1826  को पं.जुगल किशोर शुक्ल द्वारा बंगाल में की गई थी। पत्र का नाम था 'उदंत मार्तंड '। आर्थिक कठिनाइयों और बंगाल  में हिंदी का प्रचलन नहीं होने के कारण लगभग डेढ़ वर्ष में ही यह बंद हो गया। लेकिन  इसने हिंदी पत्रकारिता के सूर्य  को उदित कर दिया था जो आज भी देदीप्यमान है।  
हिंदी क्षेत्र उत्तर प्रदेश से प्रकाशित होने वाला पहला साप्ताहिक हिंदी पत्र 'बनारस अखबार '(1845) था जिसके संपादक थे गोविंद नाथ थंते। हिंदी पत्रकारिता के विकासक्रम में कुछ पत्रकार प्रकाशस्तंभ बने जिन्होंने अपने समय में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और अनेक समाचार पत्र ने आजादी की अलख को जगाए रखने का प्रयास किया।

हिंदी साहित्य से जुड़े व्यक्तियों का भी हिंदी पत्रकारिता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता को समृद्ध, उन्नत व बहुमुखी बनाने में भारतेन्दु का योगदान अद्वितीय है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का अंकुरण किया।

भारतेंदु मंडल के वरेण्य पत्रकारों ने अपनी समर्पित सेवा-भावना के बल पर जन-चेतना को प्रस्फुटित किया। कविवचन सुधा (1867), अल्मोड़ा अखबार (1871), हिंदी दीप्ति प्रकाश (1872), बिहार बंधु (1872), सदादर्श (1874), हिंदी प्रदीप (1877), भारत मिश्र (1878), सारसुधानिधि (1879), उचितवक्ता (1880), ब्राह्मण (1883) इस काल के प्रमुख पत्र हैं।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का आगाज़ भले ही 1857 के विद्रोह से हुआ हो पर इस के बीज़ अलग अलग पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से  19वीं सदी के पूर्वार्ध से ही डल  गए थे।  समाज को जागृत करके एवं स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने में  हिन्दी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

गांधी जी ने  ‘सत्याग्रह’, ‘यंग इंडिया’, ‘नवजीवन’ आदि पत्रों का प्रकाशन कर  देश को जगाने व मानसिक तौर पर तैयार करने का काम किया। सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से उन्होंने ‘हरिजन’, ‘हरिजन सेवक’ और ‘हरिजन बंधु’ नाम के भी पत्र निकाले।  महादेवी वर्मा ने पत्रकारिता और पत्रकारों की उपयोगिता बताते हुए कहा था कि  पत्रकारिता एक रचनाशील विधा है।

इसके बगैर समाज को बदलना असंभव है। अतः पत्रकारों को अपने दायित्व और कर्तव्यों का निर्वाह निष्ठापूर्वक करना चाहिए क्योंकि उन्हीं के पैरों के छालों से इतिहास लिखा जायेगा। उद्दंत मार्तण्ड से प्रारंभ हुई हिंदी पत्रकारिता की यात्रा मीडिया के अलग अलग रूपों तक पहुँच गयी है लेकिन क्या इस कथन की सार्थकता कहीं भी प्रमाणित हो रही है।

टीवी मीडिया ने पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रांति तो लायी किंतु  चैनलों की बाढ़ ,चौबीसों घंटों ख़बरों के प्रसारण ने समाचारों की सार्थकता को कठघरे में ला दिया। किसी समय अख़बारों को गली चौराहों ,बसों ,ट्रेनों में हैडलाइन को चिल्ला कर ,ग्राहकों को खरीदने के लिए आकर्षित किया जाता था,उन हैडलाइन पर लोगों में बहसें हुआ करती थीं लेकिन आज ये चीखना चिल्लाना टीवी डिबेट का किस्सा ज़रूर है लेकिन वो किसी सार्थक बहस या नैरेटिव को जन्म नहीं दे रहा।

वर्तमान पत्रकारिता(मीडिया) परिदृश्य अत्यंत परिवर्तनशील एवं जटिल है। अपने जन्म से ही पत्रकारिता मानव समाज का अभिन्न  है। इस ऊंचाई को प्राप्त करने के लिए मीडिया ने एक लम्बी यात्रा तय की है। प्रिंंट से शुरु होकर सोशल नेटवर्किंग साइट के अलग अलग रुपों तक पहुंचा है।

आजादी से पहले, पत्रकारिता के समक्ष जन-जन में स्वातंत्र्य चेतना का संचार करना प्रमुख लक्ष्य था। जिसे तत्कालीन अख़बारों ने शिद्दत से निभाया। उस समय पत्रकारिता एक 'मिशन' थी लेकिन समय के साथ- साथ  मिशन  "प्रोफेशन" में तब्दील हो गया। ….जैसे जैसे सामाजिक -राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन आता गया,पत्रकारिता भी उससे प्रभावित होती गयी। अखबार अब सिर्फ खबरों को जानने का साधन  नहीं रहे बल्कि इलेक्ट्रॉनिक  मीडिया के कारण खबरें बनाने  भी लगे क्योंकि चौबीस घंटे चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चलाए जाने लगे।  

व्यावसायिकता और टी. आर. पी.की अंधी दौड़ ने पत्रकारिता के मूल्यों को बदल के रख दिया है। पहले जनता के लिए खबरें प्रकाशित की जाती थीं, जनता को सूचना देना नैतिक दायित्व था। आज चैनलों की आपसी प्रतियोगिता  ने मूल्यों  को ताक पर रख कर जनता को उपभोक्ता बना दिया है।

जनहितकारी प्रसारण,प्रकाशन समाप्त ही होते जा रहे  हैं। जनता को निष्पक्ष खबरें, जन मानस के विकास, समाज को शिक्षित करना जैसे उद्देश्य से मीडिया ने दूरी बना ली है  है।   इन चुनौतियों   के बाद भी हिंदी पत्रकारिता असीम संभावनाओं से भरी है।

आधुनिक तकनीक इसकी महत्ता में चार चाँद लगा रहे हैं। इक्कीसवीं सदी का आने वाला समय नए तकनीकों का होगा जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मेटावर्स जैसे तकनीक शामिल हैं। इन तकनीकों से समाचारों का प्रकाशन, प्रसारण तो आसान होगा लेकिन सारे काम तकनीक के द्वारा होने से 'मैन पावर' की आवश्यकता घटती जाएगी।इसके साथ ही अनछुए या हाशिए  के मुद्दों को भी मुख्यधारा में लाने की जरूरत होगी।  

आवश्यकता इस बात की है कि पैसे कमाने की दौड़ में शामिल न होकर हिंदी पत्रकारिता अपनी बौद्धिकता बरक़रार रखे. उसे पुनः बाज़ारवाद को छोड़कर अपने गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर सामाजिक विकास और परिवर्तन का वाहक बने।

 पत्रकारिता का पहले उद्देश्य जनता की इच्छाओं और विचारों को समझना, उनमें वांछनीय उद्देश्यों को जागृत करना और सार्वजनिक दोषों को निर्भीकतापूर्वक प्रकट करना है। अर्थात समाज को बदलना ही पत्रकारिता का दायित्व है। इन् उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पत्रकारिता अपने दायित्वबोध से भावी पीढ़ी के लिए आदर्श स्थापित कर पायेगी।

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