महालया और दुर्गा पूजा पर विशेष रिपोर्ट।

 महालया और दुर्गा पूजा पर विशेष रिपोर्ट। 
महालया का महत्व बंगाली समुदाय में कुछ खास है. मां दुर्गा में आस्था रखने वाले लोग इस दिन का इंतजार करते हैं और महालया के साथ ही दुर्गा पूजा की शुरुआत हो जाती है।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, महालया और पितृ पक्ष की अमावस्या एक ही दिन मनाई जाती है. इस साल महालया 14 अक्टूबर को मनाई जा रही है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, महालया के दिन पितरों की विदाई के साथ पितृपक्ष (Pitru Paksha) का समापन होता है और देवी पक्ष (Devi Paksha) की शुरुआत होती है. इस दिन विधि विधान से माता दुर्गा की पूजा अर्चना करके उनसे अपने घर आगमन के लिए निवेदन किया जाता है और पितरों को जल तिल अर्पित करते हुए उन्हें विदाई दी जाती है.
महालया के दिन ही मूर्तिकार मां दुर्गा की आंखों को तैयार करते हैं और रंग भरकर मूर्ति को अंतिम रूप देते हैं. 
महालया के दिन पितरों का किया जाता है तर्पण
महालया के दिन पितरों को अंतिम विदाई दी जाती है. पितरों को दूध, तील, कुशा, पुष्प और गंध मिश्रित जल से तृप्त किया जाता है. इस दिन पितरों की पसंद का भोजन बनाया जाता है और विभिन्न स्थानों पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है. इसके अलावा इसका पहला हिस्सा गाय को, दूसरा देवताओं को, तीसरा हिस्सा कौवे को, चौथा हिस्सा कुत्ते को और पांचवा हिस्सा चीटियों को दिया जाता है.

 वेश्यालय की मिट्टी से बनाई जाती है मां की मूर्ति
इस परंपरा के पीछे हैं कई मान्यताएं
वेश्यालय की मिट्टी को पवित्र माना जाता है

पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के समय दुर्गा पूजा धूमधाम से की जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुर्गा पूजा के लिए मां की मूर्ति को बनाने के लिए वेश्याओं के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है? कोलकाता के रेड लाइट एरिया सोनागाछी से लाई गई मिट्टी से मां की मूर्ति का निर्माण किया जाता है.
आइये जानते हैं कि क्यों मां की मूर्ति को वेश्यालयों के आंगन की मिट्टी से तैयार किया जाता है.
ऐसा करने के पीछे कई मान्यताएं है, जिनमें से एक पौराकाणिक कथा के अनुसार, एक बार गंगा स्नान के लिए जा रही कुछ वेश्याओं ने घाट पर कुष्ठ रोगी को बैठे देखा, जो लोगों से गंगा स्नान करवाने के लिए कह रहा था, लेकिन किसी ने उसकी गुहार न सुनी.
फिर वेश्याओं ने रोगी को गंगा स्नान करवा दिया. वह कुष्ठ रोगी भगवान शिव जी थे, वेश्याओं ने शिव जी के कहने पर वरदान मांगा कि, हमारे आंगन की मिट्टी के बिना दुर्गा प्रतिमाओं ना बन पाएं. बस तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति वेश्याओं के घर जाता है तब वह अपने पुण्य कर्म बाहर ही छोड़कर जाता है, इसलिए उनके आंगन की मिट्टी पवित्र होती है. इसलिए दुर्गा मां की प्रतिमा बनाने के लिए वेशालय के आंगने की मिट्टी लाई जाती है.

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